कोरोना वायरस लॉकडाउन: भूख से घास खाने की नौबत, ख़बर छापी तो पत्रकार पर कार्रवाई

लॉकडाउन: भूख से घास खाने की नौबत, ख़बर छापी तो पत्रकार पर कार्रवाई

बनारस के कोइरीपुर गाँव में मुसहर जाति के लोग लॉकडाउन के दौरान खाने को दाना न होने के चलते घास खाकर गुज़ारा कर रहे हैं। खेतों से चूहा पकड़कर खाने के लिए जाने जाने वाले मुसहरों के पास कोई काम नहीं और अब भूखे रहने का संकट है। इस सच को उजागर करने वाले बनारस के पत्रकार विजय विनीत को सरकार के ग़ुस्से का शिकार होना पड़ा है। पत्रकार को ज़िलाधिकारी बनारस कौशलराज शर्मा ने नोटिस भेज कर इस ख़बर का खंडन छापने को कहा है और वह भी उसी प्रमुखता के साथ। बनारस व लखनऊ के प्रकाशित अख़बार ‘जनसंदेश टाइम्स’ के प्रधान संपादक सुभाष राय को भी नोटिस भेजा गया है।

ख़बर छपने के बाद ज़िलाधिकारी ने एक एडीएम स्तर के अधिकारी से जाँच करवाई और घास खाने की ख़बर को झूठा क़रार दिया। ज़िलाधिकारी ने घास को पौष्टिक आहार बता दिया और कहा कि इसे खाना ठीक है। ज़िलाधिकारी के इस नोटिस के बाद पत्रकार संगठनों व राजनैतिक दलों ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए विजय विनीत के उत्पीड़न को चिंताजनक बताया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए नोटिस वापस लेने और मुसहरों के लिए कुछ ठोस करने को कहा है।

डीएम ने कहा- घास नहीं, अंकरी के दाने थे

मुसहरों के घास खाने की ख़बर प्रकाशित होने के बाद हरकत में आयी प्रदेश सरकार ने ज़िलाधिकारी बनारस से पूछताछ की। आनन-फानन में ज़िलाधिकारी ने एक एडीएम स्तर के अधिकारी को कोइरीपुर गाँव भेज कर जाँच करवाई और पूरे प्रकरण को झूठा क़रार दे दिया। ज़िलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने जाँच रिपोर्ट के आधार पर पत्रकारों को बताया कि मुसहर दरअसल घास नहीं बल्कि एक खास क़िस्म का गेहूँ, अंकरी के दाने खा रहे थे। ग़ौरतलब है कि अंकरी को घास माना जाता है और यह गेहूँ के खेतों में उगती है। ज़िलाधिकारी ने पत्रकारों के सामने ख़ुद अपने बेटे को बिठा अंकरी घास खिलाकर भी दिखाया। 

संबंधित ख़बर में भी यह साफ़ कहा गया गया था कि घरों में अन्न का दाना न होने के चलते मुसहर गेहूँ के खेतों से अंकरी घास निकाल कर खा रहे हैं। मुसहरों ने पत्रकार विजय विनीत को घर में रखे खाली बर्तन और अंकरी घास को भी दिखाया था जिससे उनका जीवन चल रहा है। ख़बर में यह भी साफ़ लिखा था कि भूख शांत करने के लिए मुसहरों का परिवार खेतों से अंकरी घास उखाड़ कर लाए और उसके दाने छीलकर काम चलाने की कोशिश की।

हालाँकि कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अंकरी घास वास्तव में हानिकारक होती है और इसीलिए गेहूँ की कटाई के समय अलग कर देते हैं। अगर यह नुक़सानदायक न होता तो अन्न में शामिल होता।

मदद पहुँची 

मुसहरों की दर्दनाक कहानी सामने आने के बाद मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर) के लेनिन रघुवंशी और कांग्रेस नेता अजय राय खाद्यान्न व साबुन लेकर पहुँचे और कुछ राहत पहुँचाई। सरकार की नज़र में मामला आने के बाद मुसहरों को और भी राहत पहुँचाई गयी है। लेनिन ने बताया कि बुधवार को भी उन्होंने अनाज लेकर मुसहरों की बस्ती में जाने की कोशिश की थी पर सुरक्षा बलों ने रोक दिया था। उनके मुताबिक़ मास्क सैनिटाइजर की कौन कहे मुसहरों के पास तो साबुन और अनाज तक मयस्सर नहीं हैं। उन्होंने बताया कि मुसहर लोग ज़्यादातर ईंट-भट्टों पर काम करते हैं जो आजकल लॉकडाउन के कारण बंद हैं। मुसहरों का भूख मिटाने का एक बड़ा ज़रिया गेहूँ के खेतों में पाए जाने वाले चूहे थे।

जब से उन्हें पता चला है कि चूहा खाने से जानलेवा बीमारी हंता फैल रही तो ये ज़रिया भी बंद हो गया है।

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