विकास के नाम पर हमने प्राकृतिक परिवेश में घोला जहर, विनाश की ओर बढ़ रहे कदम

प्रतीकात्मक तस्वीर

नाहिदा क़ुरैशी :-

जीवन की जरूरतों को विकास का नाम देकर हमने आपदाओं को आमंत्रित किया , आधुनिकीकरण से हमने अपने लिए नए आयाम तो बना लिए लेकिन सबसे जरूरी और जीवनदाहिनी प्रकृति को जितना नुकसान हमने पहुँचाया है , उसकी भरपाई हम अगले 100 सालों तक नही कर पाएंगे ।आजकल मानव निर्मित तकनीकी प्रगति पर्यावरण को कई तरीकों से खराब कर रही है जो अंततः प्रकृति के संतुलन या संतुलन को परेशान करती है। हम इस ग्रह पर भविष्य में जीवन के अस्तित्व के साथ-साथ अपने जीवन को भी खतरे में डाल रहे हैं।वर्तमान में मनुष्य ने पर्यावरण को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ! हरे – भरे पेड़ – पौधों को काटना , वृक्षारोपण नहीं करना , कारखानों से निकलने वाली धुआं का सही तरह से निस्तारण नहीं करना , प्लास्टिक का अधिक उपयोग करना आदि सभी कारणों से पर्यावरण प्रदुषण बढ़ा है , वैसे ही मोबाइल वेव्स से पर्यावरण ही न नही पक्षियों तक को छोड़ा नही है , धड़ल्ले से जहां चाहे वहा बस लगाते चलो जैसी नीतियों के साथ हमने बेड़ा गर्क कर दिया , विनाश की ओर बढ़ रहे हमारे कदम

प्राकृतिक परिवेश जैसे भूमि, वायु, जल, पौधे, पशु, ठोस पदार्थ, अपशिष्ट, धूप, वन और अन्य चीजें। स्वस्थ वातावरण प्रकृति के संतुलन को बनाए रखता है और साथ ही पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों को विकसित, पोषण और विकसित करने में मदद करता है।

प्राकृतिक पर्यावरण के घटकों का उपयोग एक संसाधन के रूप में किया जाता है, लेकिन यह कुछ बुनियादी भौतिक आवश्यकताओं और जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए मानव द्वारा भी शोषण किया जाता है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों को चुनौती नहीं देनी चाहिए और पर्यावरण को इतना प्रदूषण या कचरा डालना बंद करना चाहिए, जिस से की पृथ्वी में जीवन की संभावनाएं बनी रहे , हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों को महत्व देना चाहिए और प्राकृतिक अनुशासन में रहकर उनका उपयोग करना चाहिए।

इसके लिए सरकार को भी चाहिए कि वो सिर्फ लोगो को जागरूक ही नही बल्कि ऐसे कार्यक्रमो का आयोजन करे जिसमे पृथ्वी और हमारे प्रकृति का भी कुछ लाभ हो वरना आगे जीवन संभव होना मुमकिन न होगा