लेख-विशेष/ ‘इसमें बर्थ डे का जश्न कहां है!’ (-राजेन्द्र शर्मा)

तो अब क्या मोदी जी के विरोध के चक्कर में विरोधी चीतों की भारत वापसी का भी विरोध करेंगे? पर कर तो रहे हैं। और कुछ नहीं मिला, तो चीतों की वापसी में भी मोदी जी के विरोध का एंगल निकाल लिया।

लेख-विशेष :

इसमें बर्थ डे का जश्न कहां है !

कह रहे हैं कि यह चीतों की भारत वापसी कम है और मोदी जी के बर्थ डे के जश्न का मामला ज्यादा है। और बर्थ डे का जश्न भी ऐसा-वैसा नहीं, आलीशान बल्कि एकदम शाही कहिए, शाही। शाही ठसक है, सो चीते पिंजड़े से छोड़े जा रहे हैं। बादशाह सलामत खुद ही चीते छोड़ रहे हैं, जन्म दिन के मुबारक मौके पर। और चीते भी ऐरे-गैरे नहीं, इम्पोर्टेड।

सात समंदर पार, अफ्रीकी महाद्वीप में नामीबिया से आठ चीते पकडक़र मंगवाए गए हैं, खास जन्म दिन पर छोडऩे के लिए। जश्न में कबूतर वगैरह छोडऩा पुराने भारत में बहुत हुआ, अब नये इंडिया में जश्न में चीता वगैरह ही छोड़े जाएंगे। जब पब्लिक ने छप्पन इंच की छाती वाले शेर को राज सौंपा है, फिर जश्न में चीतों से कम रौबीले जानवर तो क्या ही छोड़े जाएंगे! और बर्थ डे शाही है तो, जश्न भी तो शाही होना चाहिए। बादशाह की नहीं, सल्तनत की इज्जत का सवाल है।

आज दुनिया में भारत की भी एक इज्जत है, एक रुतबा है। तभी तो मोदी जी का बर्थ डे मनाने के लिए रूस, चीन समेत कई ताकतवर देशों के सबसे बड़े नेता उज्बेकिस्तान की राजधानी, समरकंद में जुटे थे। शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन का तो बहाना था, असली मकसद तो मोदी जी का जन्म दिन मनाना था। पर मोदी जी तो अपने बर्थ डे को इस साल चीता दिवस के रूप में मनाने का कमिटमेंट पहले ही दे चुके थे।

मोदी जी ने साफ-साफ कह दिया कि चीतों से आजादी के लिए एक दिन भी ज्यादा इंतजार नहीं कराया जा सकता है। झखमार कर, दर्जन भर विश्व नेताओं को जन्म दिन की पूर्व-संध्या में जमावड़ा कर के काम चलाना पड़ा। पर सुनते हैं कि पुतिन तो सारे टैम मोदी जी को इसी की सफाई देता रहा कि वह चाहकर भी उनके लिए हैप्पी बर्थ डे नहीं कर सकता है। रूस में यह अंधविश्वास जो है कि जन्म दिन से पहले, जन्म दिन की बधाई देना अशुभ होता है।

खैर! इतने सारे विश्व नेताओं ने मिलकर मोदी जी के लिए हैप्पी बर्थ डे भले ही नहीं गाया हो, पर बर्थ डे गिफ्ट में मोदी जी को शंघाई सहयोग संगठन का अगला अध्यक्ष तो बना ही दिया। हैरानी की बात नहीं होगी कि अगले साल ये सभी विश्व नेता दिल्ली में जुटें, मोदी जी का जन्म दिन मनाने के लिए। सारी दुनिया को मोदी जी का बजवाया डंका सुनाई दे रहा है, बस अपने देश में ही विपक्षियों ने कान बंद कर रखे हैं।

बेशक, ऐसे विरोधियों से मोदी जी के निस्वार्थ चीता प्रेम को समझने की तो उम्मीद ही करना बेकार है। लेकिन, पूरे देश ने तो टीवी कैमरे की आंखों से मोदी जी का चीता प्रेम देख लिया; उनके लिए इतना ही काफी है। दूरी की वजह से कैमरे भले न पकड़ पाए हों, लीवर घुमाकर पिंजड़ा खोलकर दो चीतों को बाड़े में छोड़ते हुए, मोदी जी निश्चित रूप से भावुक हो उठे थे। यह भारत की धरती पर चीतों की वापसी की घड़ी थी। यह भारत की धरती पर दुनिया के सबसे तेज रफ्तार जानवर की दौड़ की वापसी थी। और बिन चीता सब सून के पूरे सत्तर साल बाद, यह घड़ी आयी थी। भावनाओं का उमडऩा तो बनता था। इसका, भला किसी बर्थ डे वगैरह से क्या लेना-देना?

जानकार बताते हैं कि मोदी जी ने पेशेवर फोटोग्राफरों वाले कैमरे के लैंस के इस ओर आंखों के आंसू छिपाए और लैंस के उस ओर चीतों पर जमकर निशाने लगाए। चीते की खातिर मोदी जी कई मिनट तक कैमरे के पीछे बने रहे, फिर भी भाई लोग कहते हैं कि मोदी जी को कैमरे से ज्यादा और किसी चीज से प्यार नहीं है। शुक्र है कि दूसरे फोटोग्राफरों ने मोदी जी के कैमरे के पीछे रहने की भी तस्वीरें खींच लीं वर्ना दुनिया को इस पर विश्वास ही नहीं होता कि मोदी जी ने भारत वापसी पर चीतों को ऐसा वीवीआइपी ट्रीटमेंट दिया होगा–खुद कैमरे के पीछे रहकर, चीतों को कैमरे के आगे आने का मौका दिया होगा!

पर मोदी जी के इस त्याग की कद्र करना तो दूर, विरोधी तो उनके पवित्र चीता प्रेम को भी यह कहकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें, चीतों की ही फिक्र है। गरीबों की, उनकी रोटी-रोजगार की तो कोई फिक्र ही नहीं है। लेकिन, यह एकदम झूठा प्रचार है। मोदी जी ने चीतों की वापसी के बाद अपने पहले भाषण में ही अच्छी तरह से समझा दिया था कि पर्यावरण और इकॉनामी, दोनों में कोई झगड़ा नहीं है। कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य में चीतों की वापसी के सामने सहरिया आदिवासियों की भूख और गरीबी को खड़ा करने की कोशिश कोई नहीं करे।

उल्टे सच तो यह है कि चीतों के लिए मोदी के प्रेम के पीछे भी, सहरिया आदिवासियों के लिए उनका प्रेम ही ज्यादा है। चीतों की वापसी ही तो नये इंडिया में रोटी-रोजगार का रास्ता है। अभी चीते आ रहे हैं। फिर पर्यटक आएंगे। फिर रोजगार भी आएंगे। रोजगार भी नौकरियों वाले नहीं, आत्मनिर्भरता वाले रोजगार। यानी पर्यावरण भी और पब्लिक का कल्याण भी। और मुफ्त की रेवड़ी एक पैसे की भी नहीं। बस, लोगों को जरा धीरज रखना होगा। कब-कब कर के वातावरण में नकारात्मक बढ़ाने से दूर रहना होगा। अब सब का साथ, विकास और प्रयास के लिए, मोदी जी बेचारे मेहमान चीतों की जान तो ले नहीं लेंगे!

और आखिर में एक बात और। जन्म के दिन मोदी जी ने क्या कुछ नहीं किया? चीते छोड़े। चीतों के फोटो खींचे। चीते छोडक़र भाषण दिया। बाद में फिर एक भाषण में गरीब महिलाओं को माता कहा और बताया कि उनके लिए, जन्म दिन पर अपनी माता के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेने का मौका तक छोड़ दिया। और हर बार नये कपड़े पहनकर, पब्लिक को दर्शन दिया। साफ है कि अगले ने जन्म दिन पर सब कुछ किया, जन्म दिन मनाने के सिवा। फिर भी आत्मरति का शिकार होने का इल्जाम लग रहा है – बड़ी नाइंसाफी है भाई!

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