रायपुर से 125 किमी दूर बारनवापारा (बार) अभयारण्य में 1928 तक काले हिरण देखे गए और फिर गायब हो गए। उसके बाद अब, यानी 94 साल बाद इस जंगल में पिछले दो माह से 39 काले हिरणों का झुंड कुलांचे भर रहा है।
77 काले हिरणों को दिल्ली जू और कानन पेंडारी से दो साल पहले यहां लाया गया। जंगल में छोड़ने से पहले वह तमाम सावधानियां बरती गईं, जो कान्हा किसली में 2012 में हुए ऐसे ही प्रयोग में नहीं बरती गई थीं। काले हिरणों का झुंड सीधे कान्हा के जंगल में छोड़ दिया गया। वे जंगल के आदी नहीं थे, इसलिए कुछ दिन में सभी शेरों के शिकार बन गए।
लेकिन रायपुर लाए गए काले हिरणों को पहले घने जंगल के बीच बड़े से बाड़े में रखा गया, जहां दूसरे जानवर भी आते थे। यहां दो साल रहकर यह झुंड जंगल को समझने लगा और चीतलों के झुंड से दोस्ती हो गई। फिर इन्हें जनवरी-फरवरी में ट्रेनिंग दी गई।
मार्च के पहले हफ्ते में इनमें से 39 को बार के जंगल में छोड़ा गया और नजर रखी गई कि ये हिंसक जानवरों का शिकार न बनें। लेकिन दो माह से सभी हिरण सुरक्षित हैं, बीमार भी नहीं पड़े।
1928 के बाद से काॅलम खाली
वन विभाग के अफसरों के मुताबिक बार के एक सदी से ज्यादा पुराने दस्तावेजों में जानवरों के काॅलम में काले हिरण का भी काॅलम है। यह 1928 के बाद से खाली है। अत: यह माना जाता रहा कि यहां तब से काले हिरण खत्म हो गए। यहां बस्तर की गुफाओं में बनी हिरणों की आकृति में काले हिरणों जैसी भी हैं।
तेंदुए भी आते थे बाड़े तक
बार के घने जंगल में एक हेक्टयर में जालीदार बाड़ा बनाया। कुछ दिन में चीतलों का झुंड नजदीक आने लगा। कई बार तेंदुए भी शिकार के चक्कर में मंडराते देखे गए। चीतलों से दोस्ती काले हिरणों के लिए उपयोगी रही।
4 मार्च को सीसीएफ पीएस पैकरा के निर्देश पर डा. राकेश वर्मा और डा. रश्मिता ने काले हिरणों के स्वास्थ्य परीक्षण किया। इसके बाद बार के अधीक्षक डा. आनंद कोदरिया, रेंजर कृष्णानु चंद्राकर और पवन सिन्हा की टीम इन्हें बार के कोठारी रेंज में छोड़ आई।
ट्रेनिंग: घास खाने का आदी बनाया
सभी काले हिरणों को लाकर बाड़े में रखने के बाद उन्हें पालतू जानवरों का चारा देना बंद किया गया और हरी घास दी जाने लगी। 15 दिन बाद घास आधी कर दी गई तो हिरण बाड़े की खास खाकर पेट भरने लगे।
15 दिन बाद हरा चारा देना बंद कर दिया गया और हिरण पूरी तरह जंगल की खास और पत्तियों पर निर्भर हो गए। हालांकि इसमें एक नर हिरण की मौत अपच से हुई। लेकिन कुछ दिन में सभी जंगली घास और फूल-पत्ती के अभ्यस्त हो गए।