Saturday, April 20, 2024

‘भारत बंद- छग बंद’ के आह्वान को सफल करने पर माकपा ने ‘किसानों और आम जनता’ का जताया आभार

‘भारत बंद – छत्तीसगढ़ बंद’ के आह्वान को सफल करने पर माकपा ने जताया किसानों और आम जनता का आभार

रायपुर : अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और छत्तीसगढ़ के किसान संगठनों द्वारा कॉर्पोरेटपरस्त, किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आहूत ‘भारत बंद -छत्तीसगढ़ बंद’ को सफल बनाने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने किसानों और आम जनता के प्रति आभार व्यक्त किया है। माकपा ने कहा है कि वह कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ किसानों के संघर्षों के साथ डटकर खड़ी है।

आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि आम जनता की नजरों में इन कानूनों की कोई वैधता नहीं है और इन्हें वापस लिया जाना चाहिए। सांसदों की मांग के बावजूद यदि कोई विधेयक मत विभाजन के लिए नहीं रखा जाता या विपक्ष की अनुपस्थिति में पारित करवाया जाता है, तो यह संसदीय कार्यप्रणाली के प्रति सरकार के हिकारत भरे रवैये को ही दिखाता है और किसी भी गैर-लोकतांत्रिक और संविधान विरोधी सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि कोरोना महामारी से उपजे संकट की आड़ में सबसे छोटे सत्र में जिस प्रकार मजदूरों और किसानों के अधिकारों पर डाका डालने वाले कानूनों को पारित किया गया है, उससे यह साफ है कि यह सरकार कॉरपोरेटों के नौकर की तरह काम कर रही है।

उन्होंने कहा कि मंडी के बाहर खरीदने की छूट देने के बाद अब कोई व्यापारी किसानों की फसल खरीदने के लिए मंडियों में नहीं जाएगा और मंडियों से बाहर किसानों को फसल की आधी कीमत भी नहीं मिलेगी। समर्थन मूल्य पर सरकार यदि धान नहीं खरीदेगी, तो कालांतर में गरीबों को एक और दो रुपये की दर से राशन में चावल-गेहूं भी नहीं मिलेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पंगु हो जाएगी।

इन कानूनों का असर सहकारिता के क्षेत्र की बर्बादी के रूप में भी नज़र आएगा। इसके साथ ही व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की छूट देने से और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देने से कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ेगी और बाजार की महंगाई में आग लग जायेगी। ये सब प्रावधान आम जनता की तबाही, किसानों की बर्बादी और आत्महत्या का और अर्थव्यवस्था के विनाश का कारण बनेंगे।

उन्होंने कहा कि संविधान में कृषि राज्य का विषय है, लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय कानून बनाने के लिए राज्यों से सलाह-मशविरा तक न करना दिखाता है कि संघ नियंत्रित इस भाजपा सरकार को हमारे देश के संघीय ढांचे की रक्षा करने की कोई परवाह नहीं है।

माकपा ने कहा है कि इन किसान विरोधी कानूनों और श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों के खिलाफ देश की आम जनता को संगठित कर सड़क की लड़ाई लड़ी जाएगी और सरकार को देश को तबाह करने वाले इन कानूनों को निरस्त करने के लिए बाध्य किया जाएगा। अब यह संघर्ष आम जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के साथ ही इस देश के संविधान को बचाने का भी संघर्ष है।

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