Chhattisgarh Digest News Desk ; Edited by : Nahida Qureshi, Farhan Yunus.
रायपुर / आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर के आदिवासी संग्रहालय में अब आदिवासी समुदाय की कला, संस्कृति और जनजीवन से जुड़ी सामग्री की झलक जल्द देखने को मिलेगी। इसके लिए आदिवासी समाज के प्रमुखों ने रायपुर स्थित आदिवासी संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं, कला एवं संस्कृति, दैनिक जनजीवन में आदिवासी समुदाय द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं सहर्ष उपलब्ध कराए जाने की सहमति दी है।

उल्लेखनीय है कि आदिवासी संग्रहालय रायपुर में आर्टिफेक्ट संकलन के संबंध में सुकमा जिले के सभी समाज प्रमुखों की बैठक आयोजित की गई। बैठक में विभिन्ना समाज द्वारा संग्रहालय के लिए समाज के परंपरानुसार सामाजिक, सांस्कृतिक, उपयोगी सामग्री को प्रदान करने की सहमति व्यक्त की गई।
बैठक का उद्देश्य रायपुर संग्रहालय में राज्य की जनजातियों की संस्कृति को एक पटल पर लाकर जनसामान्य की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण एवं संवर्धन करना, संस्कृति को जनसामान्य से परिचित कराना, अनुसंधानकर्ताओं, शिक्षाविदों और बुद्घिजीवियों के लिए जनजाति सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करना और अनुसंधान में सहायक होना है।
बैठक में अध्यक्ष हल्बा समाज छिंदगढ़ आसमन नेगी, संरक्षक हल्बा समाज हरिराम कश्यप, केआर नेगी, अध्यक्ष भतरा समाज लक्ष्मीनाथ मौर्य, कार्यकारिणी अध्यक्ष हल्बा समाज रतन सिंह प्रधानी, कोया समाज प्रमुख चिंगाराम मण्डावी, हिरमा राम कश्यप, आकांक्षी जिला फैलो सियोना कोरिया, गोकुल दीप गिरीश समेत मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, मंडल संयोजक कोन्टा एवं छिंदगढ़ सहित अन्य पदाधिकारी एवं अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।
प्रदेश में तीन भागों में किया जनजातियों को विभाजित
बैठक में सहायक अनुसंधान अधिकारी ने समाज प्रमुखों को बताया कि जनजातियों को उनके भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर तीन भागों में उत्तरी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र में निवास करने वाले जनजातियों को विभाजित किया गया है। मुख्य रूप से दक्षिण आदिवासी क्षेत्र में बस्तर संभाग के सात जिलों के हल्बा, गदबा, परजा, दोरला, भतरा, मुरिया, माड़िया, गोंड, घुरवा, प्राधान, दण्डामी, माड़िया आदि प्रमुख रूप से निवास करते हैं।
समाज प्रमुखों ने विचार-विमर्श करते हुए सुकमा जिले में निवासरत जनजातियों की वेशभूषा, आभूषण, घरेलू, उपकरण, कृषि, शिकार उपकरण, धार्मिक आस्था, घोटूल, वाद्य यंत्र, विवाह संस्कार, पारंपरिक तकनीक, छायाचित्र प्रदर्शनी, जनजातीय साहित्य, ऑडियो विजुअल के रूप में सामग्री का संग्रहण किया जाना है।
हल्बा समाज के हरिराम कश्यप द्वारा जन्म से मरण तक और शादी के बारे में अपनी मातृ बोली हल्बी से बोले और संग्रहालय के लिए समाज की ओर से धान कुटने का मूसर, चाटू, तीर, धनुष, झारी, दादर, नागर, जुवाड़ी प्रदाय करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि समाज एवं क्षेत्र में पुरातन समय में उपयोग में लाए गए सामानों के अवशेष के संग्रहण में पूर्ण सहयोग देगा।
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