Friday, March 29, 2024

100 दिन छुट्टी देने का वायदा जुमला, सुरक्षा बलों में आपसी शूटआऊट एवं आत्महत्याओं पर श्वेत पत्र जारी करे सरकार -रणबीर सिंह

100 दिन छुट्टी देने का वायदा जुमला, सुरक्षा बलों में आपसी शूटआऊट एवं आत्महत्याओं पर श्वेत पत्र जारी करे सरकार
पिछले 10 सालों में में आपसी शूटआऊट एवं आत्महत्याओं के मामलों में बढ़ोतरी हुई है जैसा कि माननीय गृह राज्य मंत्री का संसद में दिया गया बयान कि पिछले 10 सालों में 1200 से अधिक केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों ने आत्म हत्याएं की है यानी हर दुसरे तीसरे दिन एक आत्महत्याओं का सिलसिला। तकरीबन हर साल 10 हजार अर्द्धसैनिक बलों के जवान या तो वालंटियर रिटायरमेंट ले लिए या नौकरी छोड़ दिए ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।
रणबीर सिंह महासचिव के अनुसार एक जवान को भर्ती करने के बाद एक साल की ट्रेनिंग का खर्चा तकरीबन 15 लाख से अधिक बैठता है जिसमें उसकी मिलने वाली तनख्वाह, वर्दी एक्युपमैंट उच्च दर्जे के आधुनिक हथियारों की सिखलाई, अन -आर्मड कॉम्बैट, भीड़ कंट्रोल, अचानक आने वाली प्राकृतिक विपदाओं में आम जान माल की सुरक्षा हेतु विशेष ट्रेनिंग, आगजनी दंगा फसाद से निपटना, नक्सलियों, उग्रवादियों दहशतगर्दो से निपटना, वीवीआईपी सुरक्षा ओर ना जाने कितने किस्म की सिखलाई तब जाकर 1 साल में सिपाही तैयार होता है।
अहम मुद्दा आत्महत्याओं व आपसी शूटआऊट को लेकर है। जवानों की ड्यूटी के घंटों में इजाफा हुआ है बॉर्डर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों व प्राक्सी वार से प्रभावित काश्मीर में बामुश्किल से 4-5 घंटे आराम के लिए मिलते हैं ओर दिन में भी चैन कहां। सुबह 6 बजे पीटी मार्का परेड फिर 9 बजे आधुनिक हथियारों की ट्रेनिंग जो कि लंच से पहले तक चलती हैं उसके बाद फिर 2 बजे दोपहर फटीक, घास सरकंडे काटना कैम्पस साफ सफाई ,शाम 4 बजे गेम मार्का ओर शाम 6 बजे से फिर पुरी रात के लिए चाक चौबंद चौंकिदारीं। ये हैं जवानों की दैनिक दिनचर्या। अब घर परिवार बुड्ढे मां बाप, बीवी बच्चों की सुध कब ले।
जब छुट्टी जाने का समय आए तो बेमौसम चुनाव, प्राक़तिक विपदाएं, दंगा फसाद के चलते उसकी छुट्टी का प्लान पुरी तरह से फेल हो चुका होता है। जवानों की बीवी बच्चों पर शरारती तत्वों की छेड़छाड़, जमीन जायदाद पर दबंगों का नाजायज कब्जा, बुड्ढे मां बाप का इलाज, बच्चों की शिक्षा ओर बीवी की शिकायतों का लम्बा चौड़ा चिठ्ठा जवानों की दिनचर्या पर असर डालता है मत भुलियेगा यही हाल फोर्सेस के सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट व कमांडेंट का है जो जवानों की समस्याओं को लेकर, लम्बे समय से प्रमोशन से वंचित ,मनचाहा ट्रांसफर ना मिलने के एवज में तनाव में जी रहे हैं ओर कोई भी अनहोनी का ठीकरा सिनियर के मंढ दिया जाता है।
निम्न कमेरे वर्ग फोलोवर्स, सिपाही, हवलदार उपनिरीक्षक निरिक्षकों व कमांडिंग ऑफिसर के बीच बढती खाई यानी आपसी संवाद की कमी एक बड़ा कारण है। जवानों की भावनाओं को नजरंदाज करना, उच्च अधिकारियों द्वारा अपने मातहत कर्मचारियों को हेय दृष्टि से देखना, रूखा व्यवहार, आपसी तालमेल की कमी, कम्पनी जवानों द्वारा परिवार व खास कर बीवी के बारे में फिक्रे कसना ये जवान के मानसिक तनाव के कारण बनते हैं। कई मर्तबा अल्कोहल का बहुतायत मात्रा में सेवन जोकि अक्सर आकस्मिक अनहोनी/ शुट-आउट का मुख्य कारण है। सैक्सन कमांडर, प्लाटून हवलदार व उप निरीक्षक को जवान द्वारा की गई अर्जी व शिकायत को इग्नोर करना या हल्के में लेना हादशे का कारण बनते हैं।
जरूरी मूलभूत सुविधाएं की भारी कमीं, लम्बे समय तक प्रमोशन का ना मिलना, असामायिक ट्रांसफर, घर परिवार से लम्बे समय तक हजारों किलोमीटर दूर , उच्च अधिकारियों द्वारा हेय दृष्टि से देखना,ओर 40 साल देश सेवा के बाद भी पैंशन से वंचित किया जाना जवानों के मुख्य तनावों के कारण है जिसके चलते अक्सर सीआरपीएफ ट्रेनिंग सेंटर जैसी भयावह स्थिति पैदा हो जाती है।
माननीय गृह मंत्री द्वारा 100 दिनों की छुट्टी वाला फार्मूला पुरी तरह से फेल हो गया लगता है। सीआईएसएफ में जवानों को मात्र 30 दिनों की सालाना अवकाश मिलता है तो कैसे उसको 100 दिन अवकाश दे पाएंगे। जरूरी है कि इस संबंध में सीआईएसएफ जवानों के बीच एक ताजा सर्वे कराया जाए।
अक्सर सीनियर रैंकिंग आफिसर द्वारा भी जवानों के प्रति कुछ वहिश्याना , नाकाबिले वारदाते अक्सर देखने को मिलती हैं जैसा कि अभी पिछले दिनों बीएसएफ कमांडेंट द्वारा अपने सोते हुए निरीक्षक पर लात धूसों से प्रहार किया गया ओर इसके एवज में वह एम्स ट्रॉमा सेंटर में इलाज के लिए पीड़ित इंस्पेक्टर को जीवन मृत्यु से झूझना पड़ा। पिछले दिनों एक सीआरपीएफ डीआईजी साहब द्वारा अपने मातहत मैस में काम करने वाले सिपाही के मुंह पर खौलता गर्म पानी उड़ेल दिया ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे जो कि प्रकाश में में नहीं आ पाते। यारों सारे आफिसर तो एक जैसे नहीं होते लेकिन इनमें 1या 2 परसेंट है जो फोर्सेस के नाम पर धब्बा हैं।
पिछले दिनों फोर्सेस खाशकर अर्द्धसैनिक बलों के जवानों में आपसी शूटआऊट व आत्महत्याओं के चलते मानसिक तनाव को कम करने के लिए मनोचिकित्सक की देखरेख में बड़े बड़े कैप्सूल कोर्स चलाए जाने का ढिंढोरा पीटा गया जो कि पुरी तरह से फेल हो गया है ओर ये आत्महत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
माननीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय व केंद्रीय गृह सचिव से मुलाकातों के दौरान कॉनफैडरेसन आफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा बराबर मांग की जाती रही है कि पिछले 20 सालों में हुईं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आत्महत्याओं के बारे में श्वेत पत्र जारी करे सरकार कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में आपसी शूटआऊट व आत्महत्याओं के मामले क्यों घटित हो रहे हैं।

रणबीर सिंह
महासचिव

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