Saturday, April 20, 2024

नहीं रहे छत्तीसगढ़ के एक महत्वपूर्ण और बुजुर्ग शायर नासिर अली नासिर…

रायपुर : पिछले पचास सालों से निरंतर शायरी कर रहे छत्तीसगढ़ के एक महत्वपूर्ण और बुजुर्ग शायर नासिर अली नासिर जी का इंतकाल हो गया है। 27 सितंबर 1941 को जन्मे नासिर जी को उर्दू अदब की सेवा के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने 2019 में ‘हाजी हसन अली सम्मान’ से सम्मानित किया था।

अस्सी वर्षीय नासिर जी की विशेषता यह थी कि वे विशुद्ध रूप से मात्रिक छंद में हिंदी प्रकृति की गजलें कहते थे। उनकी अकसर किसी- न -किसी नशिस्त (गोष्ठी) में शिरकत से उनके जानने वालों एवं श्रोताओं से उनका आत्मीय संबंध था।

हाल ही में उनकी चार गजलों को दिल्ली के दैनिक नेशनल एक्सप्रेस के रविवारीय अंक साहित्य एक्सप्रेस में प्रकाशित हुई है। वे हिंदी प्रकृति की ग़ज़लें कहते थे। और अद्भुत कहते थे। एक अच्छे शायर और बेहतर इनसान को शत-शत नमन!

(प्रस्तुत है, उनकी ग़ज़लें, जिन्हें पढ़कर हम उनके शिल्प और उनके चिंतन को आसानी से समझ सकते हैं।)

1
आज कंप्यूटर का जलवा कितना आलीशान है
ज्ञान में कितना चमत्कारी जगत का ज्ञान है
बहतरीं कर्मों से अपनी ज़ात की पहचान है
जग की नज़रों में हमारा शीर्षतम स्थान है
ज़िंदगी के कर्म में आतंकवादी कर्म हैं
आज मानवता कहां है मन में बस शैतान है
बात में उसकी छुपी है कितनी चतुराई की बात
भोलाभाला आप कहां हर गांव का इंसान है
ज्ञान के सूरज की किरनों का है जिससे आगमन
बुद्धि के कमरे में चारों ओर रौशनदान है
कैसे-कैसे रूप धारे हैं यहां पाखंड ने
जो लुटेरा है जगत का आज वो भगवान है
हो गई कितनी अचेतन ज़िंदगी की चेतना

2
हो गई कितनी अचेतन ज़िंदगी की चेतना
इसलिये निर्धन हमारी हो गई है सभ्यता
किस क़दर मानव विनाशी हो गया है देखिए
हो गई कितनी भयंकर आजकल की उग्रता
देने वाले ने हमें क्या ख़ूबसूरत मन दिया
मन में रखते हैं सभी के हित में हम सद्भावना
ज़िंदगी में जिंदगी का क्या सुदर्शन रूप है
आईने जैसी चमकती है तिरी शालीनता
मन तिरा महकेगा कर्मों के सुदर्शन फूल से
मन में शामिल हो अगर कल्याणकारी भावना

3
उसूलों की लगन आदर्शवानों तक पहुंचती है
तभी किरदार में वो बुद्धिमानों तक तक पहुंचती है
हमारी वार्ता में सम्मिलित भाषा के जलवे हैं
हर इक भाषा ज़ुबानों से ज़ुबानों तक पहुंचती है
विषय चिंतन का है हम आत्महत्या पर हैं आमादा
मगर राहत कोई क्या हम किसानों तक पहुंचती है
कहें क्या संस्कारों में गिरावट हमने देखी है
रिहाइश जग की जब ऊँचे मकानों तक पहुंचती है
हमारे शौर्य में रणबाकुरों-सा तेज अब भी है
हमारी वीरगाथा नौजवानों तक पहुंचती है
बड़ी श्रद्धा से अपनी जान जो कुर्बान करते हैं
वतन की आबरू उन निगहबानो तक पहुंचती है

4
हौसले बेख़ौफ़ टकराने लगे
ग़म के तूफानों को दहलाने लगे
बुद्धिजीवी हम को शिक्षक की तरह
ज़िंदगी के राज़ समझाने लगे
वो है आदर्शों में क्या आदर्शवान
श्रेष्ठता के हमको पैमाने लगे
दरमियां में उनके क्या अनबन हुई
रौब गिन गिन कर वो बतलाने लगे
ज़िंदगानी अपनी गौरववान थी
कर्म में हम श्रेष्ठ कहलाने लगे
ज़िंदगी में कर्मशीलों की तरह
कर्म के हम चांद चमकाने लगे

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