
लेख आलेख :-नाहिदा क़ुरैशी
परशुराम निर्देशित इस फिल्म की कहानी अच्छी है. ‘सरकारू वारी पाटा’ बैंक लोन घोटालों पर केंद्रित है कि कैसे सरकार अपने ही लोगों को निराश करते हुए बड़े और कॉर्पोरेट जगत के लोगो को लाभांवित करती है.
निर्देशक – परशुराम
रेटिंग – 6.1 रेटिंग imdb द्वारा मिली है वही लोगो का प्यार भी इस फ़िल्म को मिल रहा है।
महेश बाबू स्टारर फिल्म ‘सरकारू वारी पाता’ 12 मई को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. निर्देशक परशुराम द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कीर्ति सुरेश नायिका अहम भूमिका में हैं. इस फिल्म का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था, क्योंकि साउथ फिल्म इंडस्ट्री के फैंस में महेश बाबू का काफी क्रेज है. अगर आप इस फिल्म को देखने की योजना बना रहे हैं, तो उससे पहले यहां पर फिल्म का रिव्यू पढ़ लीजिए.
फिल्म की कहानी?
फिल्म में महेश बाबू ने महेश नामक एक लड़के की भूमिका निभाई है, जिसके माता-पिता 15 हजार का लोन न चुका पाने के कारण सुसाइड कर लेते हैं. जब महेश के माता-पिता सुसाइड करते हैं, तब वह काफी छोटा होता है. कुछ सालों के बाद महेश अमेरिका में एक लोन एजेंसी का सेटअप करता है और अगर उसके देनदार समय पर ब्याज नहीं देते, तो वह दुनिया को उलट पुलट करके रख देता है ,लेकिन लोन की रकम ले कर ही रहता है इसी कड़ी में
कीर्ति सुरेश ने कलावती नामक एक लड़की की भूमिका निभाई है, जिसे जुए की लत होती है और उसने अपनी क्षमता से अधिक उधार का उधार लेना पड़ता है. जब वह महेश से मिलती है, तो वह उससे 10,000 डॉलर उधार लेकर धोखा देती है, लेकिन आखिर में उसकी चालबाजी पकड़ी जाती है. जब महेश उससे लोन चुकाने के लिए कहता है, तो वह अपने पिता राजेंद्रनाथ (समुथिरकानी), जो एक भ्रष्ट और क्रूर बिजनेसमैन है, उनकी धमकी महेश को देती है.
महेश अमेरिका से भारत आता है, ताकि वह कलावती के पिता राजेंद्रनाथ से अपने पैसे ले सके. जब मामला मीडिया का ध्यान खींचता है, तो महेश खुलासा करता है कि राजेंद्रनाथ पर उनके 10,000 करोड़ रुपये बकाया हैं. इसके बाद पूरी फिल्म इसी लोन के इर्द गिर्द घूमती है. अगर आप ये जानना चाहते हैं कि महेश को उसका बकाया पैसा मिलता है या नहीं, तो इसके लिए आपको सिनेमाघरों का रुख जरूर करना होगा.
इस फिल्म को अगर कुछ मजबूत बनाता है, तो वो है फिल्म में महेश बाबू का एकदम हटकर अंदाज. फिल्म में महेश बाबू ने सीरियस एक्टिंग तो की ही है, लेकिन उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है. यह दोनों चीजें मिलकर महेश बाबू के कैरेक्टर को बहुत ही स्ट्रॉन्ग बनाते हैं. महेश के किरदार को लिखने और प्रैजेंट करने के तरीके में परशुराम निराश नहीं करते हैं. हालांकि, महेश बाबू के किरदार के उलट कीर्ति सुरेश के किरदार को ठीक से प्रैजेंट करने में निर्देशक नाकाम दिखाई दिए हैं. कीर्ति सुरेश जितनी अच्छी कलाकार हैं, उन्हें उस तरह से बड़े पर्दे पर दर्शाया नहीं गया. इसके अलावा फिल्म के बाकी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है.
परशुराम निर्देशित इस फिल्म की कहानी अच्छी है. ‘सरकारू वारी पाटा’ बैंक लोन घोटालों पर केंद्रित है कि कैसे सरकार अपने ही लोगों को निराश करती है. जिन लोगों ने बैंक से लोन लिया होता है, अगर वो समय पर चुकाने में नाकाम होते हैं, तो सरकार कैसे उनकी तरफ से आंखें मूंद लेती है. फिल्म एक गंभीर मैसेज देती है. फिल्म तब तक सीरियस लगती है, जब तक कि इस मुद्दे पर बात हो रही होती है, जब ये बेफिजूल का मुद्दा उठाती है, तो ये फिल्म थोड़ी बोरिंग लगती है. हालांकि, परशुराम फिल्म को काफी हद तक मनोरंजक बनाए रखने में कामयाब हुए हैं. भले ही फिल्म में थोड़े बोझिल सीन हैं, लेकिन ये आपको बांधे रखने में सक्षम हैं.