गींताजलि सृजन , रायपुर के तत्वाधान में साझा काव्य संग्रह “शब्दरथ ” व काव्य पाठ का भव्य आयोजन”


“गींताजलि सृजन , रायपुर के तत्वाधान में साझा काव्य संग्रह “शब्दरथ ” व काव्य पाठ का भव्य आयोजन”
रायपुर ।वृन्दावन हाल, सिविल लाइन, में मुख्य अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय हास्य कवि पदमश्री डा. सुरेंद्र दुबे , अध्यक्षता श्री. गिरिश पंकज वरिष्ठ ख्याति प्राप्त साहित्यकार , विशिष्ट अतिथि श्री. चन्द्र प्रकाश वाजपेयी भूतपूर्व विधायक ,साहित्यकार बिलासपुर, श्री. राजकिशोर वाजपेयी, अभय ग्वालियर, डा.गोपेश वाजपेयी ,भोपाल संपादक साहित्य समय , छत्तीसगढ़ की आन बान शान . मीर अली मीर ,छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य मंडल के अध्यक्ष इंजि . अमरनाथ त्यागी के आथित्य में सम्पन्न हुआ । कार्यक्रम में देशभर के चुनिंदा कवियों द्वारा काव्यपाठ व साथ ही साझा काव्य संग्रह शब्दरथ का विमोचन माननीय अतिथियों द्वारा किया गया, इस संग्रह में देशभर के चुनिंदा कवियों की कविताओं, गजल, गीतों का साझा संग्रह है । जिसकी समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार . शीलकांत पाठक ने कर रचनाकारों का उत्साह बढ़ाया, भोपाल से प्रकाशित साहित्य समय पत्रिका का भी विमोचन कर सभी लोगों को प्रतियाँ उपलब्ध करवायी गयीं। इस काव्यपाठ में सी.ए. सौरभ शुक्ला ने
सफर है सुहाना, तेरे साथ हमदम
अमावस भी पूनम, तेरे साथ हमदम छूटेगा कभी न ये साथ अपना जो बिछडूं कभी तो आवाज देना।
गींताजलि सृजन की संस्थापिका डा. श्रीमती मीनाक्षी वाजपेयी जी ने कागज पर कलम यूँ ही चल जाती है, वीर सैनिकों की जब बारात द्वारें आती है, तिरंगे में लिप्टे शहीद को देख सबकी आँखें भर आतीं हैं


कविता के माध्यम से दर्शकों को भावविभोर कर देशभक्ति का जज्बा भर दिया।बिलासपुर से पधारीं साहित्यकार कुटुम्ब न्यालय की कौंसलर डॉ उषा किरण बाजपेयी ने मौजूद परिस्थितियों में संदेश देते हुये रचना पढ़ी “हम कहाँ जा रहें है,बच्चों को झूला घर छोड,अलसेशियन को घर ला रहें है,गाड़ी में घूमा रहें है । हम कहां जा रहें है को लोगों ने सहारा ।
रायपुर से सोनाली अवस्थी जी ने ” मुस्कुराने वालों की मुश्किलें आसान हो जाती हैं,
आएँ जो बाधाएँ तो देख हँसी वो भी सकुचा जाती हैं।
महाराष्ट्र से उपस्थित स्वामिनी दुबे ने भूतेश्वर नाथ और सावन का महीना
जतमई का बहता चंचल झरना देखा , मैनें प्यारा छत्तीसगढ़ देखा ,
वरिष्ठ कवियत्री डा. शिवा वाजपेयी ने कैसा सुहाना सावन ये आया , वृन्दावन में कवियों ने नवरस बरसाया ।
ग्वालियर से उपस्थित श्री. राजकिशोर वाजपेयी अभय जी ने
कलम उठा और ऐसा लिख घर्म निभाता भी तो दिख।
मेहनतकश की रोटी लिख, महँगाई की चोटी लिख
सज्जन की लाचारी लिख
नेता खेल मदारी लिख ,
दिल्ली से उपस्थित श्रीमती रेणु मिश्रा ने
रावण रावण सब करते हैं क्या हम सबने रावण को देखा है
दश शीश और बीस भुजाओं वाला ही क्या रावण होता है।
काली करतूतों की सफेद चादर ओढ़े
न जाने कितने रावण बैठे हमनें देखे हैं।
चन्द्र प्रभा दुबे ने आडंबर की ये दुनिया दीवानी,
अपने लिए करती है बेहद मनमानी
रहन सहन पहनावा सब बदल जाते, देखते देखते अपने को ही बदल डालते, आडंबर ने क्या से क्या कर डाला , कर्ज के बोझ से निकला किसी का दीवाला
पंक्तियां पढ़ सच्चाई से अवगत कराया , वरिष्ठ कवियत्री श्कुंतला तिवारी ने दर्शकों की पसंदीदा रचना कवि कभी बूढ़ा नहीं होता ,सुना कवियों को नवयुवकों जैसी ताजगी से भर दिया ।
उपस्थित सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेटकर कार्यक्रम को यादगार बनाया गया । मंचीय अतिथियों के प्रेरणादायक उद्बबोधन जिसमें गिरिश पंकज जी ने गौ माता की रक्षा और वृद्धाआश्रम जैसे संवेदनशील विषयों पर अपने वक्तव्य में कहा ,.डा. राजकिशोर वाजपेयी जी ने चालीस वर्ष पहले का छत्तीसगढ़ को याद किया वहीं डा. गोपेश वाजपेयी जी ने कहा मैं अपनी माता की जन्मभूमि बिलासपुर छ.ग. की माटी के दर्शन को आया हूँ।. चन्द्र प्रकाश वाजपेयी जी ने साहित्य एक साधना है और लिखने वाले सभी साधकों को उनके प्रयास को और मज़बूत बनाने का बल दिया व अपने को कभी कमजोर न समझें की सीख दी उन्होंने नेताओ में चुटकी लेते हुये एक व्यंग पढ़ा” ये नेता बड़े सयाने,तुम इनको वोट न देना। कऊयें से भी काले है ,ये बगुलों से भी सयाने। राजनीति की मण्डी में.ये रोकड़ चले कमाने। खूब तालियाँ बटौरी । देश के विख्यात कवि,पदमश्री डा. सुरेंद्र दुबे जी ने रचनाकारों को मोबाइल का उपयोग न करने और हमेशा कलम चलाते रहने की सीख दी कहा आजकल लोग कलम की जगह उगुंली चलाते हैं जो बहुत ही गलत है जिससे लेखनशैली में सुधार नहीं होगा। उन्होंने हास्य व्यंग की रचनायें पढ़ते हुये अपने चिरपरिचित विधा से गिरिश जी ने कहा आपने कान्हा आओ कान्हा पुकारा और मैं कान्हा आ गया कहकर पूरी महफिल को लोटपोट कर दिया । बच्चे से लेकर बूढ़े तक हँस -हँस के ठहाके लगा रहे थे । बाहर से आये सभी कवि उनकी रचनाओं की प्रसन्ना किये बिना नहीं रह पाये। मैं भी तुलसीदास बनना चाहता था लेकिन …..। मजेदार रचना छत्तीसगढ़ के माटी सपूत के मुख से जो आनंद की अनुभूति हुयी दर्शकों को समय का ध्यान ही नहीं था। देश के विख्यात व्यंगकार गिरीश पंकज शुक्ला ने गऊ माता पर छाए संकट पर झझक़ोरते हूए कान्हा को आने का अव्हान कर गाय बचाने की रचना पढ़ संवेदनाओं से ओतप्रोत कर दिया ।
कार्यक्रम का संचालन डा. मीनाक्षी वाजपेयी एवं आभार प्रदर्शन सी.ए. सौरभ शुक्ला ने किया ।

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