Chhattisgarh Digest News Desk ; Edited by : Nahida Qureshi, Farhan Yunus.
आदिवासी विरोधी, कॉर्पोरेटपरस्त पर्यावरण अधिसूचना वापस लें सरकार, 20-26 अगस्त अभियान-आंदोलन : किसान सभा
अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने मोदी सरकार द्वारा जारी पर्यावरण आंकलन प्रभाव-2020 की अधिसूचना को आदिवासी विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बताते हुए इसे वापस लेने और सभी हितधारकों से राय लेकर इसे नए सिरे से सूत्रबद्ध किये जाने की मांग की है। किसान सभा का मानना है कि यह मसौदा न तो आम जनता के हितों की चिंता करता है और न ही पर्यावरण को बचाने की। इस अधिसूचना का वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासियों और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के जीवन और आजीविका पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि यह पर्यावरण मसौदा वाणिज्यिक खनन के लिए न केवल पर्यावरण संरक्षण कानून-1986, वनाधिकार कानून, पेसा, 5वीं व 6वीं अनुसूची के प्रावधानों से आदिवासी समुदायों को प्राप्त संवैधानिक व कानूनी अधिकारों व राष्ट्रीय हरित अधिकरण और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन करता है और उन्हें निष्प्रभावी बनाता है, बल्कि खनन के बाद जमीन को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने की प्रक्रिया पर भी चुप्पी साध लेता है।

उन्होंने कहा कि मसौदे में पर्यावरण कानूनों को इतना ढीला किया गया है कि न केवल तेल, गैस, कोयला व गैर-कोयला खनिजों के खोज से जुड़ी परियोजनाओं, निजी बंदरगाह, सौर-ताप विद्युत परियोजनाओं, सोलर पार्क और प्रतिरक्षा विस्फोट के निर्माण की परियोजनाओं सहित बहुत-सी प्रदूषणकारी परियोजनाओं को आंकलन व तकनीकी कमेटियों द्वारा जांच-परख तथा सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया से छूट दे दी गई है, बल्कि पर्यावरण प्रावधानों का उल्लंघन करने के बाद भी कुछ जुर्माना लगाकर उसे वैधता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है।
किसान सभा नेताओं ने आरोप लगाया कि इस मसौदे में 50000 वर्ग मीटर से कम की परियोजनाओं को तो पर्यावरणीय अनुमति लेने और आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभा और संबद्ध आदिवासी समुदायों की सहमति हासिल करने की शर्त से भी मुक्त रखा गया हैं। यह अधिसूचना जिला खनिज फंड का उपयोग आदिवासी क्षेत्रों के विकास और उनके पिछड़ेपन को दूर करने के बजाय इस फंड को क्लस्टर क्षेत्रों की ओर मोड़ने का प्रावधान करता है।
किसान सभा ने कहा है कि विश्व बैंक के इज ऑफ डूइंग बिज़नेस सूचकांक में भारत की स्थिति में सुधार होने, लेकिन वैश्विक पर्यावरण सूचकांक में गिरावट आने से स्पष्ट है कि सरकार की प्राथमिकता में पर्यावरण नहीं, कॉर्पोरेट व्यापार है। पर्यावरण आंकलन प्रभाव-2020 का मसौदा हमारे देश को कॉर्पोरेट गुलामी में धकेलने का काम करेगा। इसके खिलाफ 20 से 26 अगस्त तक किसान सभा पूरे प्रदेश में अभियान-आंदोलन चलाएगी।
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