
किशोर कर सहयोगी पत्रकार महासमुंद
जनचर्चा का विषय बन गया है कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का स्थानीय नेतृत्व से उभरता असंतोष

सराईपाली विधानसभा क्षेत्र मे कार्यकर्ताओं के गिरते मनोबल का जिम्मेदार कौन ? बडा सवाल..।
महासमुंद- राजनीति का उद्देश्य आम तौर पर जब सत्ता के बल पर धन उपार्जन तक सीमित रह जाए तब आम जनता का राजनीति से मोहभंग होना और पार्टी के कार्यकर्ताओं का अपने राजनेताओं से मोह भंग होना लाजिमी हो जाता है। ऐसे हालात निर्मित होने की स्थिति में जहां आम जनता की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है वही कार्यकर्ता भी मन मसोसकर रह जाते हैं , वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दल से निर्वाचित लोगों की उल्टी गिनती भी शुरू हो जाती है । इन दिनों महासमुंद जिले के सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में भी ऐसा ही कुछ सुनने देखने में आ रहा है। जहां संवैधानिक पद पर निर्वाचित नेता की कार्यशैली पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को नागवार गुजर रही है ऐसी चर्चा जोर शोर से समूचे अंचल में चल रही है।और राजनीति के गलियारों में यही बात इन दिनों अंचल में जन चर्चा का विषय बना हुआ है।
दरअसल सराईपाली क्षेत्र की जनता और राजनीति से जुडे लोंगो का यह दुर्भाग्य है कि यहां चाहे भाजपा के विधायक बने हो या कांग्रेस के विधायक, विगत दो कार्यकाल से यह परिपाटी शुरू हो गई है की पार्टी संगठन की नीतियों और विचारधारा की अपेक्षाकृत कम जानकारी रखने वाले लोगों को निर्वाचित होते देखा गया है जिससे पार्टी नीतियों से प्रभावित ऐसे कार्यकर्ता उपेक्षित होते देखे गए जो पार्टी को जिंदा रखने के लिए पूरी उमर पार्टी की जड को सींचते रहे । जाहिर सी बात है ऐसे हालात में एकाएक उभरे नेता पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं से तालमेल बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा पाते हैं। इसका साफ और सीधा उदाहरण इन दिनों कांग्रेस पार्टी में देखने में आ रहा है। हम आपको लाजिमी तौर पर बता सकते हैं कि जब-जब पार्टी के नेता का संगठन के लोगों से तालमेल कमजोर हुआ है तब तब पार्टी कमजोर होती देखी गई है। यही हाल इन दिनों सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में भी नजर आ रहा है जहां कांग्रेस पार्टी संगठन धडों में बंटी हुई नजर आ रही है लेकिन अभी भी संगठन की मजबूती के लिए कोई ठोस पहल होता नहीं दिख रहा है और सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का सब कुछ “अपनी डफली अपना राग की तर्ज” पर चल रहा है ।
पार्टी के जानकार सूत्रों के अनुसार पार्टी से जुड़े कई छोटे और जमीनी स्तर के लोग हाल ही में एक गोपनीय बैठक भी कर चुके हैं । सूत्रों की माने तो स्थानीय स्तर पर संवैधानिक नेतृत्व के प्रति विरोध के स्वर भी उभरने लगे है ।
हम आपको बताना चाहेंगे कि सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की राजनीति अविभाजित मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री रहे स्वर्गीय मोहनलाल चौधरी के बाद स्थानीय स्तर पर सरायपाली राजमहल के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही है. लेकिन इन दिनों राजमहल को बसना विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व मिलने के बाद सरायपाली मैं कांग्रेस पार्टी के हालात ऐसी हो गई है जहां पार्टी तो चल रही है लेकिन पार्टी का कोई लक्ष्य नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेसपार्टी के तह तक की राजनीति के जानकारों से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक पार्टी के प्रदेश नेतृत्व और सीएम तक भी सराईपाली विधानसभा क्षेत्र में सत्ता और संगठन के बीच तालमेल को लेकर उभर रहे सवालों और हालातों की जानकारी पंहुचाई गई है. ऐसे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व हालात से उबरने के लिए कौन सी रणनीति अपनाऐगी यह देखने वाली बात होगी । लेकिन पार्टी के अन्दर चल रहे उथल पुथल की तमाम बातें आमजन के बीच चर्चा का विषय बन जाना काफी सवाल खडा करता है । जनचर्चा यह भी है कि पार्टी कार्यकर्ताओं का एक बडा वर्ग अपने नेता के प्रति असंतोष का स्वर मुखर करने को बेताब है।बहरहाल यह सवाल भी अब उभरकर सामने आ गया है कि 15 वर्ष के लंबे अंतराल बाद सत्ता मे पंहुचने के बाद भी सरायपाली विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर क्यों हो रहा है ? कौन है इसका जिम्मेदार…? जाहिर है सवालों के उत्तर ढूंढने होंगे अन्यथा “राजनीति का ऊंट” करवट तो बदलता है ।