राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के दोनों सदनों से पारित करवाए गए कृषि बिलों को मंजूरी दे दी है। छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों के हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब ये बिल कानून बन गए हैं।
बता दें हाल में संसद ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को पारित किया है, जिस का किसानों के अलावा कांग्रेस समेत विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। बिलों पर वोटिंग के दौरान राज्यसभा में अभूतपूर्व हंगामा हुआ था। टीएमसी सांसद डेरेक ओब्रायन सहित विपक्ष के कई नेताओं ने बिल की कॉपी फाड़ दी थी। इसके बाद, राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने आठ सांसदों को सत्र के लिए निलंबित कर दिया।
वहीं, संसद से पारित होने के बाद कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अनुरोध किया था कि वह इन प्रस्तावित कानूनों पर हस्ताक्षर नहीं करें। विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा था। कांग्रेस, वाम दलों, राकांपा, द्रमुक, सपा, तृणमूल कांग्रेस और राजद सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति को भेजे ज्ञापन में इस मामले में उनसे हस्तक्षेप करने और विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध किया। इसके अलावा, बिलों के विरोध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाब नबी आजाद ने विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति कोविंद से मुलाकात भी की थी।
प्रदर्शनों से बिलों का विरोध :
सड़क से संसद तक तीनों बिलों का विरोध हो रहा है, किसान सरकार से बिलों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। हरियाणा, पंजाब में किसानों ने मोर्चा संभाला हुआ है तो वहीं, अन्य दल भी विरोध कर रहे हैं। पंजाब के अमृतसर में किसान रेल रोको प्रदर्शन के तहत रविवार को अमृतसर-दिल्ली रेलमार्ग पर जमे रहे। पटरी पर प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के लिए आसपास के गांवों के लोग खाना और अन्य सामान पहुंचा रहे हैं। नजदीक के गुरुद्वारे प्रदर्शनकारियों के लिए लंगर भी लगा रहे हैं।
कृषि बिलों पर बीजेपी ने पुराने सहयोगी दल की भी नही :
कृषि बिलों को लेकर मोदी सरकार को अपने ही सहयोगियों से भी दूर होना पड़ा। दरअसल, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) की सांसद हरसिमरत कौर ने पहले मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया और फिर शनिवार को शिरोमणि अकाली दल ने भी एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया। पार्टी की कोर समिति की बैठक के बाद सुखबीर सिंह बादल ने एनडीए गठबंधन से अलग होने की घोषणा की थी। सुखबीर ने कहा कि सरकार ने किसानों की भावनाओं का आदर करने के बारे में बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी दल एसएडी की बात नहीं सुनी।