ऑटोवाले कर रहे ई -रिक्शा वालो से दादागिरी , स्टेशन के अंदर जाने से रोकते है ई-रिक्शा , रेल्वे पुलिस क्यों है मौन

राजधानी के स्टेशन में चल रही ऑटो वालों की मनमानी ई रिक्शा को रोकते है अंदर जाने से जैसे स्टेशन इनका खुद का हो , सवारियों को जबरदस्ती ऊंचे दाम पर स्टेशन से ले जाने की चल रही है दादागिरी , छोटे ई रिक्शा वालो को जाने नही दिया जाता है स्टेशन के अंदर, रोड तक यात्रियों को समान लेकर आने में होती है असुविधा, ऑटोवालो की मनमानी को पुलिस का भी समर्थन , सवारियों से बात करने पर यह पता चला है की मनमाना भाड़ा ले कर ये ऑटो वाले उन्हे करते है मजबूर जाने के लिए क्योंकि ई रिक्शा अंदर नही जा पाता इस लिए यात्री थकन की वजह से मजबूर हो जाते है जाने के लिए, कचहरी चौक, मेडिकल कॉलेज चौक, जयस्तंभ चौक, मालवीय रोड आदि प्रमुख सड़कों पर ऑटो चालकों की मनमानी ने राहगीरों का निकलना मुश्किल कर दिया है। दिन भर मुख्य सड़क पर ही आटो चालकों के खड़े होने के चलते यहां से आने वाले अन्य राहगीरों को घंटों जाम से जूझना पड़ता है। कई बार हालत इतने बदतर हो जाते हैं कि चिकित्सा के लिए निकल रही एंबुलेंस भी फंस जाती है। कई बार यातायात पुलिस को अवगत कराया जा चुका है, लेकिन लोगों की समस्या का कोई समाधान नहीं हो सका है, ई -रिक्शा कम दाम पर और बिना प्रदूषण के सड़को पर सुविधा पूर्वक चल सकता है इस बात का ख्याल रखते हुए महापौर और प्रशासन द्वारा अंदर खरीदारी कर रहे लोगो की सुविधा का ख्याल रखते हुए बाजार में ई- रिक्शा जैसे वाहनों की मंजूरी सराहनीय कदमों में से एक है ,तो फिर शहर के साथ यदि स्टेशन में हो रही दादागिरी और मनमाना दाम पर रोक लगाने की कार्यवाही करने में प्रशासन पीछे क्यों नजर आ रहा है यह सोचना होगा क्या प्रशासन यूनियन के भय से इन ऑटो वालो की मनमानी सह रही है या इसमें किसी का हित छुपा हुआ है ?
डीजल ऑटो को शहर अंदर प्रतिबंधित करने के बावजूद बे खौफ ऑटो चालक अंदर घूम रहे है, जय स्तंभ से आश्रम तिराहा, तेलीबांधा मार्ग, रेलवे स्टेशन चौक, कचहरी चौक, कालीबाड़ी चौक, मालवीय रोड, सदर बाजार, राठौर चौक, शारदा चौक, घड़ी चौक, अंबेडकर अस्पताल चौक, पुरानी बस्ती, संतोषी नगर मार्ग, लाखेनगर, आमापारा, जीई रोड आदि मुख्य सड़कों पर डीजल आटो की वजह से सुबह 10 बजे से दोपहर तीन बजे और शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक जाम लगता है तो वही ध्वनि प्रदूषण और जाम जैसे हालात पेश आ रहे है।
शहर के अलावा ग्रामीण परमिट वाले ऑटो भी शहर के भीतर दौड़ रहे हैं। चालक कहीं भी वाहन खड़ा कर देते हैं। इसमें 10 हजार ऑटो शहरी और पांच हजार ग्रामीण हैं। ऑटो चालक जहां सवारी दिखती है वहीं रोक देते हैं। न तो पीछे देखते हैं और न ही अगल-बगल। इसका खामियाजा दूसरे वाहन चालकों को उठाना पड़ता है। अचानक से ऑटो कहीं भी मोड़ने या रोकने की वजह से पीछे से आने वाला वाहन चालक दुर्घटना का शिकार हो सकता है।
शहर में गाड़ियों की तुलना में सड़क कम हो गई हैं। उसके बाद वाहन भी सड़क पर पार्क होते हैं, इसलिए सड़कें और कम हो जाती हैं। पार्किंग की व्यवस्था करनी चाहिए, गाड़ियां यदि सही जगह पर पार्क की जाएंगी, तो सड़क खाली मिलेगी। इसके साथ ही प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व है कि वह निर्धारित जगह से ही ऑटो पर बैठे। ऑटो में क्षमता से अधिक सवारी बैठे हैं, तो यात्री को ऑटो में नहीं बैठना चाहिए।