लापरवाही : खैरागढ़ में त्राहिमाम, प्रचंड गर्मी में बूँद-बूँद के लिए तरसा सिविल लाइन

लापरवाही : खैरागढ़ में त्राहिमाम, प्रचंड गर्मी में बूँद-बूँद के लिए तरसा सिविल लाइन

राजनांदगांव। नवनिर्मित जिले के रूप में आकार ले रहे खैरागढ़ शहर में तपती धूप और आग-सी गर्मी के बीच पेयजल संकट की नौबत के पीछे वजह कुछ और नहीं, सिर्फ और सिर्फ नगर पालिका की घोर लापरवाही है। 16 मई की सुबह सिविल लाइन इलाके में कई घरों तक पानी नहीं पहुंचा। वैसे लेट-लतीफी से पानी पहुँचना यहाँ पहले से ही बेहद आम बात है, लिहाज़ा रहवासियों ने कुछ घंटे इंतज़ार में ही गुजार लिए और रात के बचे पानी से दिनचर्या निबटाने लगे। उम्मीद थी कि कुछ देर से ही सही, नल से पानी तो आ ही जायेगा। लेकिन ऐसे ही इंतज़ार में जब घंटों गुजर गए और नल सूखा का सूखा ही रहा, तब बूँद-बूँद के लिए त्राहिमाम शुरू हुई।
बाद में पता चला कि सिविल लाइन में बिछी पानी की पाइप कहीं से क्षतिग्रस्त है। इसके कारण सिविल लाइन वासियों के कंठ सूख रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इसके सुधार के लिए पिछले कई दिनों से नगर पालिका का अमला लगा हुआ है, लेकिन उसे सुधारा नहीं जा सका। यानी, गड्ढे खोदकर सुधारने की कोशिशें ज़रूर दिख रही है, लेकिन कई दिन गुजरने के बावजूद नागरिकों को बिना तकलीफ दिए पेयजल की निर्बाध आपूर्ति बनाये रखने में नगर पालिका बुरी तरह नाकाम रहा। 16 मई की सुबह जब सब्र के बाँध टूटने लगे, कंठ सूखने लगे, तब नागरिकों ने नगर पालिका के मुख्य नगर पालिका अधिकारी को मोबाइल पर कॉल करके इसकी सूचना दी। लगभग 9 बजे मुख्य नगर पालिका अधिकारी तक सूचना पहुंचने के बाद टैंकर की व्यवस्था हुई। यानी, अगर मुख्य नगर पालिका अधिकारी स्तर तक सूचना ना पहुंचे, तो इतने बड़े पालिका के सिस्टम के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे स्वमेव नागरिकों को पेयजल आपूर्ति हो सके…? क्या इसके लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है कि पेयजल आपूर्ति बाधित है, और लोगों को प्यास बुझाने के लिए मुख्य नगर पालिका अधिकारी स्तर तक कॉल करना पड़ रहा है..?

गौर कीजिये, नगर पालिका की यह शर्मनाक सरकारी लापरवाही शहर के उस सिविल लाइन इलाके में सामने आयी है, जहाँ सरकार के लिए ही काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों के परिवार-बाल-बच्चे निवास करते हैं। एसडीएम, एसडीओपी, डीएफओ, जज, तहसीलदार जैसे न जाने कितने बड़े अधिकारियों के निवास उसी सिविल लाइन में स्थित हैं। जिन अधिकारियों के भय से पूरे खैरागढ़ जिले में शुद्ध पेयजल की व्यवस्थित आपूर्ति होनी चाहिए, सरकारी अमला इतना बेख़ौफ़ है कि उन अधिकारियों के इलाके को ही बूँद-बूँद के लिए तरसाने पर आमादा है।

ऐसी हालत में फ़र्ज़ कीजिये कि यही दशा अगर दाऊ चौरा, टिकरापारा, किल्लापारा, देवारीभाठ, अमलीपारा सरीखे गरीब-गुरबों वाली बस्ती में होती, तो क्या पालिका का अमला वहां के लोगों की प्यास बुझाने की गंभीर कोशिश करता या बेख़ौफ़ होकर गरीब जनता को आमनेर, मुसका या पिपरिया नदी में झिरिया बनाकर प्यास बुझाने के लिए छोड़ देता…?
जिला मुख्यालय के रूप में खैरागढ़ जैसे-जैसे आकार लेता जाएगा, शहरी आबादी बढ़ती जाएगी। अभी कम आबादी को ढंग से पानी पिलाने में नाकाम नगर पालिका कल को बढ़ी हुई आबादी को आखिर कैसे मैनेज करेगा..? खैरागढ़ के जिला बन जाने से खैरागढ़ की जनता खुश है। लेकिन, नगर पालिका की कार्यप्रणाली ऐसी ही रही तो कल को यही जनता सोचने पर मज़बूर हो जाएगी- कि इससे तो अच्छा होता कि हमारा खैरागढ़ जिला ही नहीं बनता, कम से कम पानी के बिना कंठ तो नहीं सूखता।