रेल्वे ने 1400 सौ बायो टॉयलेट लगवाये, यात्रियों से डस्टबीन के उपयोग की अपील

Chhattisgarh Digest News Desk ; Edited by : Nahida Qureshi, Farhan Yunus.

रायपुर। यात्रियों को स्वच्छ वातावरण और सुगम यात्रा का अनुभव प्रदान करने के लिए भारतीय रेल ने स्वच्छ भारत, स्वच्छ रेल पहल के अंतर्गत विभिन्न कदम उठाए हैं। इसमें से एक है,बायो टॉयलेट भी शामिल हैं। भारतीय रेल में सत्र 2019-20 के दौरान 14,916 रेल डिब्बों में 49,487 जैव-शौचालय (बायो टॉयलेट) लगाए गए। इसके साथ ही 100 फीसदी कवरेज के साथ 68,800 कोचों में लगाए गए। जैव शौचालयों की संयुक्त संख्या 2,45,400 से अधिक हो गई है।

रायपुर रेल मंडल की बात करें तो, रायपुर रेल मंडल ने अपनी लगभग 13 गाड़ियों दुर्ग-जम्मूतवी-दुर्ग , अजमेर -दुर्ग -अजमेर, दुर्ग-राजेंद्रनगर- दुर्ग, दुर्ग-अंबिकापुर- दुर्ग, दुर्ग-कानपुर-दुर्ग सहित सभी गाड़ियों में लगभग 375 कोचों में 1400  जैव शौचालय ( बायो टॉयलेट)  लगाए हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता और पटरियों  पर वेस्ट प्रोडक्ट भी नहीं दिखता। साथ ही बायो टॉयलेट में लगे बैक्टीरिया वेस्ट मटेरियल को डस्ट पाउडर के रूप में बदल देते है।

Read More : login our web site : http://chhattisgarhdigest.in/ ,… Railway – आखिर RTI आवेदन जाता कहाँ है ?….

रेलवे ने अपील की है कि शौचालय में बोतल, चाय के कप, कपडे,नेपकिन, पॉलिथीन व गुटखा पाउच इत्यादि ना डाले। हर बायो-टॉयलेट टैंक के कोच के टॉयलेट में एक डस्टबिन भी रखा गया है, इसमें कूड़े इत्यादि को डाला जा सकता है। इस बायो-टॉयलेट स्टील टैंक की संरचना कुल 6 भागो में की गई है। इससे कि बायो डीग्रीषण सफलतापूर्वक हो। इस टैंक के निर्माण में स्टील की आधार प्लेट, अलग अलग खंड वाले प्लेट, बॉल वाल्व और पी ट्रैप का उपयोग किया गया है। टॉयलेट पैन को रबर ट्युब के साथ जोड़कर लगाया गया है। बायो-टॉयलेट टैंक को कोच के अंडर फ्रेम में लगाया गया है। इसी टैंक में बेक्टेरिया से मल-मूत्र को नष्ट करके हानिरहित पानी बाहर निकाला जाता है।

रेल यात्रियों की ओर से टॉयलेट के उपयोग के बाद उत्सर्जित मलमूत्र पी ट्रैप पाइप के माध्यम से टैंक के अंदर जाता है। टैंक में पूर्ण रूप से भरे हुए बेक्टेरिया कल्चर(इनोकुलुम) से मल मूत्र को बायोलॉजिकल पद्धति से नष्ट कर दिया जाता है। मल मूत्र को टैंक में ही साधारण पानी और गैस में परिवर्तित कर दिया जाता है। बायो टॉयलेट में उत्पन्न गैस टैंक से बाहर निकल जाती है और हानिरहित पानी क्लोरिन चेम्बर से होकर बहार निकल जाता है। बायो-टॉयलेट के टैंक से निकलने वाले एफलुयेंट की जांच प्रत्येक तीन माह के अंतराल में की जाती है। इससे यह तय किया जाता है कि बेक्टिेरिया कल्चर (इनोकुलुम) ठीक तरह से कार्य कर रहा है।

पढ़ें : रेल्वे की लापरवाही
Exit mobile version