
आइए आईने के सामने हमारे गणतंत्र का चेहरा,देखें….
भारत नामक गणतंत्र मेँ “गण” परेशान है,और “तंत्र” मजे में है ..तंत्र अमीर और अमीर होता जा रहा है,जबकि गण की गरीबी दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही है..।
सच कहें तो हमारे देश मे पिछले 73 सालो मे “तंत्र” और “गण” का मिलन कभी हो ही नही पाया.।
आज भी हमारे गणतंत्र में गण और तंत्र के बीच मे धरती और आसमान जितनी दूरी बनी हुई है.। तंत्र प्रतिदिन कई करोड़ रु कमा लेता है,जबकि गण 12 रु से भी कम की राशि मे दिन गुजार रहा है।। यकीन नही आता तो खुद देखिए हमारे “तंत्र” में एक जिम्मेदार विभाग “योजना आयोग” क्या कहता है – 32 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाला वर्ग गरीब नहीं कहा जाएगा: योजना आयोग
“तंत्र” हमारे देश में पेट भरने के बाद प्रतिदिन लगभग 250 करोड़ रुपए का भोजन बर्बाद कर देता हैं। जो लगभग 89,060 करोड़ रुपए वार्षिक बैठता है। दूसरी ओर देश का 19 करोड़ 40 लाख “गण” रोजाना भूखे पेट ही सोने को मजबूर हैं।। विडम्बना देखिए साहब मुट्ठी भर किंतु ताकतवर और निरंकुश और असंवेदनशील “तंत्र” ने लाचार मजबूर और जरूरतमंद “गण” का ऐसा शोषण किया है,कि देश की कुल सम्पत्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ एक फीसदी लोगों “तंत्र” चलाने वालों के पास है.जबकि बाकी बची सम्पत्ति में 99 फीसदी लोगों को गुजारा करना है।।
इनमे से भी “तंत्र” से जुड़े 20 प्रतिशत लोग रोजाना कुछ लाख से कुछ करोड़ रु.तक कमा लेते है।। वहीं “तंत्र” का सरकारी हिस्सा भी अपनी योग्यता और आवश्यकता से कही अधिक, ऊपर की हजारों रुपयों की कमाई सिर्फ अपना ईमान/गैरत बेच कर कमा लेता है।। जबकि “गण” से जुड़ा एक बड़ा तबका प्रतिदिन महज 12/32 रु की कमाई ही कर पाता है।।
मुझे लगता है कि ऐसे में गणतंत्र दिवस को मानने का सिर्फ एक उद्देश्य हो सकता है,कि तमाम तरह की परेशानियों और असमानताओं के बीच हम जैसे मुट्ठी भर लोगों की उम्मीदें जिंदा है और कोशिश जारी है, कि आज नही तो कल हम संविधान की उद्देशिका के अनुसार अपने देश में गणतंत्र दिवस मना पाएंगे।। जहां मुट्ठी भर “तंत्र” चलाने वाले जिम्मेदार ताकतवर और साधन सम्पन्न लोगों की गैरत जागेगी।। फिर वो अपने करोड़ो जरूरत मंद “गण” के प्रति पूरी ईमानदारी से समर्पित होंगे।। देश में व्यक्ति गत हित की बजाए बहुजन हिताय बहुजन सुखाए का माहौल होगा।। शोषण और बेइमानी बीते कल की बात होंगी।।
जय हिंद
गणपर्व 26 जन की हार्दिक शुभ कामनाओं सहित
