छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लोक आयोग की कार्रवाई पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है। आयोग ने रायपुर स्थित पं. रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के एक डॉक्टर के खिलाफ जांच शुरू की थी। खास बात यह है कि जिस मामले की जांच की जा रही थी, उसकी शिकायत ही नहीं की गई थी। आयोग ने स्वेच्छा से ही जांच शुरू कर दी। इसे चुनौती दी गई। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी की एकलपीठ में हुई।
यूनिवर्सिटी डॉक्टर शिव शंकर अग्रवाल ने अधिवक्ता रोहित शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। बताया कि उनके खिलाफ लोक आयोग ने कार्रवाई शुरू करते हुए जवाब तलब किया। उन्होंने कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में कहा कि आयोग के अधिनियम व परिनियम में प्रावधान है कि किसी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत होने पर आयोग जांच करेगा, लेकिन बिना शिकायत ही जांच शुरु कर दी गई।
आयोग ने न शिकायत प्रपत्र, न शुल्क और शपथपत्र की जानकारी दी
नियमों के मुताबिक, शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत निर्धारित प्रपत्र, शुल्क और शपथ-पत्र की जानकारी व आरोप की प्रति उपलब्ध कराई जानी चाहिए। जबकि आरोपी को मांगने पर भी नहीं दी गई। इस पर याचिकाकर्ता ने RTI के तहत जानकारी मांगी। इस पर आयोग ने अपने जवाब में कहा कि शिकायत निर्धारित प्रपत्र में नहीं दी गई है। शपथ पत्र और शुल्क भी प्रस्तुत नहीं किया है।
आयोग ने कहा- प्रकरण को किसी की शिकायत पर नहीं दर्ज किया गया
इसके बाद याचिकाकर्ता डॉ. अग्रवाल ने आयोग के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत किया कि विधिक प्रावधान और संविधान के अनुच्छेद 20 उपखंड 3 के तहत खुद के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। साथ ही शिकायत की प्रति एक बार फिर मांगी गई। इस पर लोक आयोग ने कहा कि प्रकरण को किसी की शिकायत पर नहीं बल्कि विशिष्ट जानकारी पर दर्ज किया गया है।
हाईकोर्ट ने आयोग की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए मांगा जवाब
याचिकाकर्ता ने कहा, लोक आयोग की यह कार्रवाई विधि विरुद्ध और लोक आयोग अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। याचिका में कहा, यह चलने योग्य नहीं होने के बावजूद लोक आयोग ने मनमाने ढंग से एकतरफा कार्रवाई जारी रखी है। मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने लोक आयोग की आगे की कार्रवाई पर आगामी आदेश तक रोक लगाते हुए जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।